(१२१.१) प्रस्तावना
भारतीय संस्कृति की सबसे विलक्षण विशेषता इसकी समयचक्र के साथ सुसंबद्ध धार्मिक चेतना है। प्रत्येक ऋतु, मास, तिथि और पर्व न केवल खगोलीय घटनाओं से जुड़ा होता है, बल्कि उनमें गहरे आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक अर्थ भी अंतर्निहित होते हैं। इन्हीं महीनों में एक अत्यंत पवित्र, प्रभावशाली और आध्यात्मिक दृष्टि से विशिष्ट मास है—श्रावण मास, जिसे 'सावन' भी कहा जाता है। श्रावण मास न केवल धार्मिक अनुष्ठानों और व्रतों के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह भारतीय जनमानस की आध्यात्मिक ऊर्जा और सांस्कृतिक चेतना का भी प्रतीक है।
(१२१.२) पौराणिक एवं धार्मिक पृष्ठभूमि
हिन्दू पंचांग के अनुसार श्रावण मास हिन्दू वर्ष का पाँचवाँ महीना है, जो आषाढ़ मास के बाद और भाद्रपद मास से पूर्व आता है। यह मास सामान्यतः जुलाई-अगस्त के मध्य पड़ता है। इसका नामकरण 'श्रवण' नक्षत्र के आधार पर हुआ है, क्योंकि इस माह में पूर्णिमा के समय चंद्रमा श्रवण नक्षत्र में स्थित होता है।
श्रावण मास को विशेष रूप से भगवान शिव का प्रिय मास माना गया है। अनेक पुराणों में उल्लिखित है कि समुद्र मंथन के समय निकले कालकूट विष को जब देवताओं और असुरों ने अस्वीकार कर दिया, तब भगवान शिव ने सम्पूर्ण सृष्टि की रक्षा हेतु उसे स्वयं पी लिया। यह घटना श्रावण मास में ही घटित हुई थी। विषपान के कारण भगवान शिव का शरीर नीला हो गया और उन्हें 'नीलकंठ' नाम प्राप्त हुआ। तभी से यह मास शिव भक्ति के लिए सर्वाधिक उपयुक्त माना गया।
(१२१.३) श्रावण मास की विशेष धार्मिक गतिविधियाँ
श्रावण मास में प्रतिदिन—विशेषकर सोमवार को—भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है। शिवलिंग पर जलाभिषेक, बेलपत्र, धतूरा, भांग, दूध, दही, घी, शहद आदि अर्पण कर शिव को प्रसन्न करने की परंपरा है।
श्रावण सोमवार व्रत
श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को ‘श्रावण सोमवार व्रत’ रखा जाता है। यह व्रत मुख्यतः अविवाहित कन्याओं द्वारा योग्य वर प्राप्ति हेतु रखा जाता है, किन्तु विवाहित स्त्रियाँ एवं पुरुष भी इस व्रत को पुण्य एवं मोक्ष की प्राप्ति हेतु करते हैं। इस दिन भक्त उपवास रखते हैं और संध्या के समय शिव आराधना में लीन रहते हैं।
रुद्राभिषेक और मंत्र जाप
श्रावण में 'रुद्राभिषेक' का विशेष महत्व है, जो 'शिवमहापुराण' में वर्णित एक अत्यंत पुण्यदायक अनुष्ठान है। इसमें वैदिक पद्धति से ऋग्वेद, यजुर्वेद तथा सामवेद के मंत्रों से शिवलिंग पर अभिषेक किया जाता है। ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जप, महामृत्युंजय मंत्र का पाठ एवं शिव स्तोत्रों का गायन इस माह में आध्यात्मिक लाभ के लिए विशेष रूप से किया जाता है।
(१२१.४) कांवड़ यात्रा: जनभक्ति की विशाल लहर
श्रावण मास के साथ ‘कांवड़ यात्रा’ भी गहराई से जुड़ी हुई है। कांवड़ यात्री विभिन्न तीर्थस्थलों जैसे हरिद्वार, गंगोत्री, गोमुख आदि से गंगाजल लाकर उसे अपने स्थानीय शिव मंदिरों में चढ़ाते हैं। ये श्रद्धालु ‘कांवड़िये’ कहलाते हैं। यह यात्रा केवल शारीरिक कष्ट सहने का अभ्यास नहीं है, बल्कि यह आत्म-शुद्धि, संयम और शिव भक्ति का जीवंत प्रमाण है। इस यात्रा में अनुशासन, नशा त्याग, नियम पालन और भक्ति का समन्वय होता है।
कांवड़ यात्रा एक धार्मिक अनुष्ठान होते हुए भी एक सामूहिक सामाजिक आन्दोलन का स्वरूप धारण कर चुकी है, जिसमें भक्ति के साथ-साथ सेवा, त्याग और समर्पण का संदेश समाज को मिलता है।
(१२१.५) श्रावण मास के प्रमुख पर्व
श्रावण मास में कई महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व भी आते हैं, जो इस माह की गरिमा को और अधिक बढ़ा देते हैं:
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नाग पंचमी – इस दिन नाग देवता की पूजा होती है। यह पर्व पर्यावरण चेतना से भी जुड़ा है, क्योंकि सर्पों का संरक्षण प्राकृतिक संतुलन हेतु आवश्यक है।
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हरियाली तीज – यह पर्व स्त्रियों द्वारा मनाया जाता है, जिसमें वे शिव-पार्वती की पूजा कर अपने वैवाहिक जीवन की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।
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रक्षा बंधन – यह पर्व श्रावण पूर्णिमा को मनाया जाता है, जो भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक है।
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व्रत और उपवास – श्रावण मास में विशेष रूप से सात्विक आहार लिया जाता है, और अनेक लोग मांस, मदिरा, लहसुन-प्याज आदि का त्याग करते हैं।
(१२१.६) आयुर्वेदिक और प्राकृतिक दृष्टिकोण
श्रावण मास वर्षा ऋतु के मध्य आता है। आयुर्वेद के अनुसार इस समय मानव शरीर की पाचन शक्ति कम हो जाती है और वात तथा पित्त दोष बढ़ जाते हैं। अतः इस मास में उपवास, सात्विक भोजन तथा संयम आवश्यक है। धार्मिक दृष्टि से भी इस मास में व्रत-उपवास, नियम, संयम, तामसिक भोजन का त्याग करना न केवल आध्यात्मिक शुद्धि, बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से भी लाभकारी माना गया है।
इसके अलावा यह समय प्राकृतिक सौंदर्य का चरम होता है। हरियाली, वर्षा, नदी-नालों की कलकल ध्वनि, और प्रकृति की छटा भक्तों के मन को शिव भक्ति की ओर सहज रूप से आकर्षित करती है।
(१२१.७) श्रावण मास का सांस्कृतिक और साहित्यिक पक्ष
भारतीय लोकसाहित्य, कविता, संगीत और नृत्य में श्रावण मास का विशेष स्थान है। वर्षा ऋतु के आगमन के साथ लोकगीतों में ‘सावन’ विशेष रूप से गाया जाता है। स्त्रियाँ समूह में झूले झूलती हैं और हरियाली तीज, सिंजारा जैसे त्योहार मनाती हैं।
संत साहित्य, भक्तिकाव्य और नाथ संप्रदाय के गीतों में सावन के प्रति विशेष आकर्षण मिलता है। मीराबाई, कबीर, तुलसीदास, आदि भक्त कवियों ने श्रावण के धार्मिक और भावनात्मक पक्ष को अपने काव्य में स्थान दिया है।
उदाहरणस्वरूप तुलसीदासजी की पंक्तियाँ—
"बरषा ऋतु हरीत भूमि भयौ बिबिध बृक्ष बिचित्र।
चरण पखारन चलें सिव, सरित सिन्धु सब नित्र।"
यह पंक्तियाँ सावन में शिव की उपस्थिति, प्रकृति की हरियाली और भक्ति की लहर का चित्र प्रस्तुत करती हैं।
(१२१.८) समाजशास्त्रीय दृष्टि से श्रावण मास
श्रावण मास भारतीय समाज में एकता, सहयोग और नैतिक अनुशासन का प्रतीक भी है। यह मास सभी जातियों, वर्गों और लिंगों को एक सूत्र में बाँधता है। भक्ति और पर्वों के माध्यम से सामाजिक समरसता, पर्यावरण के प्रति जागरूकता, स्वास्थ्य के प्रति सतर्कता और आध्यात्मिक मूल्य समाज में पुनः जागृत होते हैं। ग्रामीण परिवेश में यह मास मेलों, झूलों, गीतों और लोक उत्सवों के रूप में सामाजिक आत्मीयता को और सुदृढ़ करता है।
(१२१.९) उपसंहार
श्रावण मास केवल एक धार्मिक मास नहीं, बल्कि भारतीय जीवनदर्शन, भक्ति परंपरा और प्रकृति के सामंजस्य का सुंदर संगम है। यह मास हमें संयम, श्रद्धा, भक्ति और प्राकृतिक संतुलन के प्रति सजग होने की प्रेरणा देता है। शिव भक्ति के माध्यम से आत्मा की शुद्धि, समाज के साथ समरसता, और प्रकृति के साथ समन्वय स्थापित करना इस मास की सबसे बड़ी शिक्षा है।
श्रावण मास एक जीवंत परंपरा है, जो सदियों से भारतीय जनमानस को धर्म, अध्यात्म और संस्कृति की रसधारा में अवगाहित करती आ रही है। पोस्ट ग्रेजुएट छात्रों के लिए यह मास धार्मिक अनुभवों से परे सामाजिक विज्ञान, लोक परंपरा, साहित्य, पर्यावरण अध्ययन और दर्शन के समन्वय का एक अध्ययन विषय भी बन सकता है।
Team Yuva Aaveg-
Adarsh Tiwari
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